17वां साल लगा है मुझे। हमेशा बाहें खोले सबकों ही गले से लगाया है मैने। कितने लोग आए और चले गए। कितनों ने मेरे नाम से राजसत्ता का लाभ लिया। पर देखो मेरा भाग्य मैं पहले भी खाली हाथ था और आज भी खाली हाथ ही हूं। हां पुराने नाम उत्तरांचल से अब उत्तराखंड बन गया हूं।
कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है आज उत्तराखंड अपने 17वें स्थापना दिवस पर। इन 16 सालों में उत्तराखंड राज्य में अभी तक जितने भी मुख्यमंत्री आए सब अपनी कुर्सी बचाते हुए दिखे। प्रदेश की सूरत ए हाल पर किसी का ध्यान नही गया।
उत्तराखंड के विकास को सभी ने नजरअंदाज ही किया है। और आज भी ऐसा ही किया जा रहा है। राज्य में नेताओं ने अपनी उन्नति तो चाही पर उस जगह को सम्पन्न नही करा पाए जिस राज्य में उन्हें एक नई पहचान दी। सबका का ध्यान सिर्फ वोट बैक पर ही रहा। चुनाव के समय में प्रदेश के विकास के बड़े बड़े वादे करके वोट हड़पने की राजनीति में लगे रहे उत्तराखंड के नेता। और विडंवना तो देखिए नेताओं की करनी की सजा उत्तराखंड को ही भरनी पड़ी। इससे बुरा और क्या हो सकता है कि राज्य को अभी तक उसकी स्थायी राजधानी भी नही मिल सकी। यहां के लोगों के विकास की अगर बात करे तो राज्य के खाली पड़े गांव उत्तराखंड का दर्द बयां करने के लिए काफी है।पलायन कर रहे लोग सूबे की तरक्की और हालात की कहानी कहने के लिए काफी है।
उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा तो मिला पर इसकी स्थिति नए से भी बदतर कर दी गई है। राज्य को मिलने के नाम पर बस प्राकृतिक आपदाएं ही मिली। और यहां के राजनेताओं को इन आपदाओं के नाम पर मोटी रकम। जिससे राज्य का विकास तो कभी नही किया गया पर हां इन माननीयों ने अपना विकास पूरी तरह से किया।
उत्तराखंड को सिर्फ इन नेताओं की तरफ से अराजकता ही झेलनी पड़ी है। स्थापना दिवस में आज कई जगह रंगारंग कार्यक्रम और विकास झाकियां दिखायी जाती है पर क्या ये झाकियां असल मायने में उत्तराखंड की तस्वीर सामने लाती है। यकीन मानिए जबाव न में ही मिलेगा।
कितना दुर्भाग्यपूर्ण है आज कि परिस्थिति में हरे भरे उत्तराखंड को बंजर उत्तराखंड लिखना। कैसे होगा यहां का विकास ओर कब होगा यहां का विकास ये न हमे पता है और नेताओं की तो कहिए ही मत। पर जैसे तैसे गुजर बसर की स्थिति से चल रहा है हमारा उत्तराखंड।
जय उत्तराखंड जय भारत।