उत्तराखंड में नहीं बन पाई स्क्रैप पॉलिसी, 15 साल पुराने वाहन विभागों पर बने बोझ।

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देहरादून – प्रदेश में स्क्रैप पॉलिसी न बनने से 15 साल पुराने वाहन अब विभागों के लिए बोझ बन गए हैं। हालात ये हैं कि राज्य को स्क्रैप पॉलिसी 31 मार्च तक बनानी थी, लेकिन मई तक भी परिवहन मुख्यालय से इसका प्रस्ताव शासन को नहीं आया है। अब शासन ने मुख्यालय से पॉलिसी का प्रस्ताव मांगा है।

दरअसल, केंद्र सरकार ने एक अप्रैल से देशभर में स्क्रैप पॉलिसी लागू की है। इसके तहत करीब दो साल से केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से राज्यों को निर्देश जारी किए जा रहे हैं। मंत्रालय ने यह भी तय किया था कि चूंकि एक अप्रैल से पॉलिसी लागू होनी है, लिहाजा राज्यों को अपने स्तर से स्क्रैप पॉलिसी हर हाल में 31 मार्च तक बनानी होगी।

शोपीस बनकर खड़े है वाहन
इसमें यह भी तय करना होगा कि एक अप्रैल से 15 साल से अधिक पुराने जो भी सरकारी वाहन कबाड़ बन जाएंगे, उनके निस्तारण की प्रक्रिया क्या होगी, लेकिन उत्तराखंड के परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। राज्य ने अभी तक पॉलिसी ही नहीं बनाई है।

नतीजतन, केंद्र के नियमों के तहत राज्य के 5500 सरकारी वाहन कबाड़ तो बन गए हैं, लेकिन उनका निपटारा नहीं हो पा रहा। यह सभी वाहन अब विभाग के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। इन वाहनों का संचालन किया जा नहीं जा सकता। केवल शोपीस बनकर खड़े हुए हैं।

नए वाहन खरीद की नीति बनाने पर रहा जोर

परिवहन विभाग ने स्क्रैप पॉलिसी को लेकर कतई गंभीरता नहीं दिखाई। इसके बजाए कबाड़ बनने वाले वाहनों की जगह नए वाहन खरीद की नीति बनाई गई। इस नीति को लेकर परिवहन और वित्त विभाग के बीच खींचतान हुई, लेकिन आखिरकार नए वाहन खरीद की नीति जारी हो गई। इसके साथ ही अंदरखाने इस बात पर भी जोर दिया गया कि नए वाहन खरीद के विकल्प के तौर पर किराये के वाहन भी लिए जा सकते हैं।

यूपी में 22 रुपये किलो कबाड़ के दाम की पॉलिसी

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी स्क्रैप पॉलिसी बनाई है। इसके तहत यदि कोई अपने 15 साल पुराने वाहन को कबाड़ सेंटर पर बेचता है तो उसे लगभग 22 रुपये प्रति किलो के हिसाब से इसका दाम मिलेगा। विभाग ने इस दाम के लिए इस्पात मंत्रालय भारत सरकार के मानक को ही आधार बनाकर नीति बनाई है। वाहन के कुल वजन का 65 प्रतिशत हिस्सा ही उसका मूल वजन माना जाएगा और उस रकम का भी 90 प्रतिशत ही भुगतान होगा।

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