देहरादून- उत्तराखंड विधानसभा चुनाव मे अपना अस्तित्व खो चुकी कांग्रेस के सामने निकाय चुनाव मे बेहतर प्रर्दशन करने की बड़ी चुनौती थी, लेकिन निकाय चुनाव के परिणामों से साफ है कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव की करारी हार से कोई सबक नहीं लिया। पहले लोकसभा चुनाव फिर विधानसभा चुनाव और अब छोटी सरकार के चुनाव मे भी सूपड़ा साफ होने के बाद भी कांग्रेस हार का चिंतन करने से तो दूर गुप्थमगुत्था करने के मूड मे है। पार्टी की कमान संभाले अध्यक्ष प्रीतम सिंह हार को जताना तो नही चाहते लेकिन जिम्मेदारी लेने की बात पर पार्टी के दिग्गज को कोसने से भी नही चूक रहे।
वो भी इस बात को माने है कि कांग्रेस को फिर गुटबाजी के कारण आॅधे मुंह गिरना पड़ा है। वह साफ तौर पर यह कहते नजर आये कि कांग्रेस पार्टी ने सभी के लिए बहुत कुछ किया है इसलिए सभी का दायित्व था कि वह भी पार्टी के लिए करे। सूत्रों की माने तो पार्टी मे सब कुछ ठीक नहीं चल रहा यहां तक कि पार्टी के भीतर बगावत के सुर निकलने भी शुरू हो गये, इसकी वजह यह भी है कि पार्टी की कमान उनके हाथों मे है जिन्होंने पार्टी के लिए कुछ नहीं किया और इसका रोष बीते दिनों पार्टी नेताओं ने सार्वजनिक रूप से जाहिर भी किया था। वहीं कुछ लोगों का तो यहां तक माना है कि पार्टी प्रदेश प्रभारी अनुग्रह सिंह जब उत्तराखंड आते है तो उनको गुमराह किया जाता है। साथ ही प्रदेश प्रभारी जब कुमाऊ या गढ़वाल के दौरो पर जाते है तो उन्हें अपनी बात रखने का समय तक नहीं दिया जाता है जिसे पार्टी के कई पदाधिकारियों मे नाराजगी भी है।
निकाय चुनाव के प्रचार-प्रसार पर गौर करें तो पार्टी ने उस तरह की कोई एनर्जी नही दिखाई जो आम जनता को अपनी और लुभा सके। यहां तक की पार्टी देहरादून तक ही सीमित रही जैसे पार्टी उत्तराखंड़ कांग्रेस नहीं देहरादून कांग्रेस हो। पार्टी के स्टार प्रचारक की बात करें तो किसी का भी रूख पार्टी के पक्ष मे बहुत ज्यादा सकारात्मक नही था। पार्टी के दिग्गज नेता तक अलग-अलग दिशा मे चलते नजर आये। बात चाहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की करे या फिर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की या पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की करे कोई भी दिग्गज एक साथ मजबूती से पार्टी के साथ खडे़ होते नहीं दिखाई दिया। यहां तक की नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश अपने बेटे के प्रचार मे ही लगी रही। वही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी पार्टी से दूर-दूर नजर आये और इस का नुकसान पार्टी को निकाय चुनाव की हार के रूप मे उठाना पड़ा। यही नहीं पार्टी पहले गढ़वाल और कुंमाऊ दो खेमो मे बटती नजर आती थी, लेकिन देहरादून मेयर पर दिनेश अग्रवाल को टिकट मिलने से खाफा नेताओं ने पार्टी को गढ़वाली विरोधी करार देते हुए गढ़वाली और मैदानी दो खेमों मे बाट दिया, जिसका नुकसान पार्टी को देहरादून मेयर की सीट को गंवा कर चुकाना पड़ा। अगर कांग्रेस मे ये गुटबाजी ऐसी चलती रही है तो कही कांग्रेस को निकाय चुनाव के साथ साथ आगामी लोकसभा चुनाव मे भी कही इसका नुकसान न उठाना पडे।