उत्तराखंड के कुछ नौकरशाह ईमानदारी का दंड झेल रहे हैं तो कुछ बेइमानी का लाभ ले रहे हैं। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाली सरकार के लिए यह चिंतन का मुद्दा है कि इन नौकरशाहों को कैसे आगे या पीछे घटाया या बढ़ाया जाए।

लेकिन ऐसे नौकरशाहों को पीछे हटाने से कहीं न कहीं नीति और नियति पर सवाल उठने लगे हैं। हाल ही में कुछ अधिकारियो को सरकार द्वारा हटाया गया, कुछ को बदला गया। सच तो यह है कि सरकार बदलने के साथ-साथ नौकरशाह जरूर बदलते हैं लेकिन जो रंग नहीं बदलते उन्हें सरकार की ओर से हतोत्साहित किया जाता प्रोत्साहित नहीं।

ऐसे ही नौकरशाहों में एक नाम चंद्रेश कुमार यादव का है। चंद्रेश कुमार उधमसिंह नगर के जिलाधिकारी थे। सरकार के बदलते ही उन पर स्थानान्तरण की गाज गिरी। हालांकि इसी श्रेणी में पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी रणजीत सिन्हा भी शामिल है, जिन्हें सचिवालय बैठा दिया गया। सचिवालय की नियुक्ति दंड है या प्रोत्साहन यह अलग है पर चंद्रेश कुमार यादव ने सूचना विभाग के महानिदेशक के रूप में जो कार्य किया है उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने ऐसे लोगों पर नकेल कसी जिन्होंने भ्रष्टाचार को लगातार प्रश्रय दिया है।

चंद्रेश कुमार यादव ने इसका प्रमाण भी दिखाया। उन्होंने उन लोगों की नाकों में नकेल लगाई जिन्हें लूट की खुली छूट मिली हुई थी। इसी तरह जिलाधिकारी रहने के बाद भी उन्होंने लोगों को अच्छा-खासा झटका दिया। शायद यही लोगों को रास नहीं आया और सरकार बदलते ही उनको सचिवालय में बैठा दिया गया है।

यह कार्य संस्कृति का प्रतीक नहीं कार्य अपसंस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इसके ठीक विपरीत जिन जिलाधिकारियो ने कांग्रेस के कार्यकाल में थानेदारों तक को प्रत्याशियों को जिताने के लिए शराब बांटने की खुली छूट दी थी, उन्हें आज भी मनमाफिक पोस्टिंग मिली हुई है जबकि ईमानदारी का दंड कुछ अधिकारी झेल रहे हैं।

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