पीरियड्स एक ऐसी स्टेज है जिससे महिलाओ को चाहते और न चाहते हुए भी गुजरना पड़ता ही है। ज्यादातर महिलाएं माहवारी (पीरियड्स) की समस्याओं से परेशान रहती है, लेकिन अज्ञानतावश या फिर शर्म या झिझक के कारण लगातार इस समस्या से जूझती रहती है। लेकिन उत्तराखंड के इस क्षेत्र में पीरियड्स आने पर महिलाओं से ‘जानवरों’ जैसा सुलूक किया जाता है। यहां आज भी मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव होता है। यहाँ तक की उनके साथ छुआछूत का व्यवहार किया जाता है। उनको कम से कम चार रातें गौशाला में या घर के बाहर ही गुजारनी पड़ती हैं।
उच्च हिमालय से लगा होने के कारण इस क्षेत्र में आठ माह तक कड़ाके की ठंड पड़ती है। ऐसे में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सीमित गर्म कपड़ों में जानवरों के गौशाला में पुआल के बिछौने पर सर्द रातें गुजारनी पड़ती हैं। कई घरों में तो महिलाएं दिन के समय घर में प्रवेश कर सकती हैं लेकिन कुछ घर ऐसे भी हैं जहां चार दिनों तक प्रवेश नहीं करने दिया जाता। पर्वतीय क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अछूत माना जाता है। कम से कम चार दिनों तक महिलाओं को घर के एक कमरे में अलग रखा जाता है। इस दौरान रसोई और देवालयों में प्रवेश वर्जित रहता है। पांचवें दिन गोमूत्र से शुद्धीकरण के बाद ही सामान्य रूप से कामकाज की अनुमति होती है। लेकिन मल्ला दानपुर क्षेत्र में महिलाओं को घर में ही प्रवेश की अनुमति नहीं होती है।
गांव के बुजुर्गों की मानें तो सभी घरों में देवी-देवताओं के मंदिर हैं। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर में रखने से देवी-देवता रुष्ट हो जाते हैं, इसलिए उनको गौशाला में रखा जाता है।