
रुद्रप्रयाग, कुलदीप राणा: शहरी क्षेत्रों से नौकरी छोड़कर लौटे घर की ओर
रोजगार से जोड़ते हुए पशुपालन को बनाया व्यवसाय
माह में हजारों की आमदनी कमा रहे ग्रामीण
दुग्ध व्यवसाय में मिल रही सबसे बड़ी सफलता
आपदा से तबाह केदारघाटी के लोगों ने पशुपालन को रोजगार का जरिया बनाया है। पशुपालन करने वाला हर व्यक्ति माह में चालीस से पचास हजार कमा रहा है, जबकि कईं ऐसे लोग भी हैं जो बाहरी शहरों की नौकरी को छोड़कर पशुपालन का काम करने में जुटे हुए हैं और उन्हें अच्छा मुनाफा भी हो रहा है। सरकार और प्रशासन की ओर से मिल रही मदद से पशुपालक काफी खुश हैं। आज हम आपकों ऐसे कई पशुपालकों से रूबरू करवायेंगे, जिन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते पशुपालन को एक नये आयाम तक पहुंचाया है और पलायन कर रहे युवाओं के लिए मिसाल बने हैं।
रुद्रप्रयाग जनपद की केदारघाटी में तीर्थाटन के अलावा कोई भी ऐसा रोजगार नहीं है, जिसे लोग अपना सकें। रोजगार के साधन न होने से युवाओं को पलायन करना पड़ता है। ऐसे में गांव के गांव खाली हो चुके हैं, मगर कई ऐसे लोग भी हैं जो शहर की नौकरी को त्यागकर घर को लौटे हैं और अपनी मेहनत से पशुपालन का कार्य करते हुए लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गये हैं। ग्रामीणों ने अपने डेरी उद्योग में रेड सिंधी, जर्सी हॉल्स्टीन फ्रिसियन कॅटल नस्ल की गाय पाली हुई हैं, जो उनके लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं।

केदारघाटी के सौड़ी निवासी श्रीधर प्रसाद भट्ट मेहनत और निष्ठा के साथ पशुपालन का व्यवसाय कर रहे हैं। उन्होंने अपने गौशाला में पांच से छः गायों को पाला है। महाराष्ट्र से चालीस हजार की नौकरी को त्याग वे घर को लौटे तो उन्होंने पशुपालन को व्यवसाय से जोड़ने का मन बनाया। जब वे पहली गाय खरीदकर लाये तो ग्रामीणों ने उन पर खूब तंज कसे और दुग्ध व्यवसाय के न चलने की बात कही, मगर श्री भट्ट ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने ग्रामीणों के इस बर्ताव को चैलेंज के रूप में स्वीकार किया और दिन-रात मेहनत की। उन्होंने इतनी मेहनत की उनका व्यवसाय एक साल के भीतर ही काफी फैल गया और देखते ही देखते उन्होंने अपने को पशुपालन व्यवसाय में स्थापित कर दिया। उनकी मेहनत और निष्ठा को देखते हुए लोग भी अब पशुपालन का प्रशिक्षण ले रहे हैं। उनकी माने तो पहाड़ी जिलों के लिए दुग्ध व्यवसाय सबसे लाभकारी है। बाजारों में गाय का दूध मिलना मुश्किल हो गया है। दूध से पनीर, घी, मख्खन, मट्ठा बनाया जा सकता है।
पशुपालक श्रीधर भट्ट ने गोबर गैस प्लांट भी लगाया है। साल में दो माह ही वे एलपीजी गैस का उपयोग करते हैं, जबकि अन्य दस माह गोबर गैस का उपयोग किया जाता है। इसका वेस्टेज से वर्मी कम्पोस्ट बनाया जाता है, जो खेती के लिए उपयोगी है। उन्होंने बताया कि सरकार और पशुपालन विभाग की ओर से ग्रामीणों की हर सहायता की जा रहा है। सब्सिडी में गाय मुहैया करवाई जा रही है और समय-समय पर चिकित्सकों की टीम को पशुपालकों के पास भेजा जा रहा है, जिससे मवेशियों का सही से उपचार हो रहा है।

केदारघाटी के गिंवाला गांव निवासी गोविंद सिंह भंडारी कुक्कुट ओर मत्स्य पालन का कार्य कर रहे हैं। करीब दस सालों से वे यह व्यवसाय कर रहे हैं। दिल्ली से नौकरी छोड़कर श्री भंडारी घर लौटे और पशुपालन का व्यवसाय करने की सोची। उन्होंने पहले प्रशिक्षण लिया और फिर अपना रोजगार शुरू किया। आज वे माह में हजारों की कमाई करते हैं, जिससे उनके परिवार का लालन-पालन होने के साथ ही आजीविका भी चल रही है।
केदारघाटी के ही हाट गांव निवासी सुरेन्द्र प्रसाद गोस्वामी की माने तो केदारघाटी में आपदा के बाद लोग पलायन को मजबूर हैं। सरकार की ओर से रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं कराये जा रहे हैं। ऐसे में पशुपालन का व्यवसाय शुरू किया गया है। बाहरी शहरों से गायों को लाया गया है और दुग्ध का व्यवसाय किया जा रहा है। बाजार में दुध की भी काफी डिमांड है और यहां के लिए यह सबसे बेहतर रोजगार है।
केदारघाटी में आपदा के बाद रोजगार का जरिया समाप्त हो गया है। ऐसे में लोगों ने पशुपालन को रोजगार का बेहतर जरिया समझा है। भेड़, मत्स्य, गाय, भैंस, बकरी, कुक्कुट का व्यवसाय लोगों ने शुरू कर दिया है। कई ऐसे लोग हैं, जो शहरी क्षेत्रों से प्राईवेट नौकरी को छोड़कर आये हैं और अपने घर में पशुपालन का व्यवसाय कर हजारों की आमदनी कमा रहे हैं। पशुपालकों को सरकार की योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है।