सैनिक चाहे किसी भी देश का हो वह हर वक्त अपनी जान हथेली पर लिए चलता है और सैनिक से भी ज्यादा बलिदानी उनके परिवारजन होते हैं जो कब किस मोड़ पर अपने घर का सहारा खो दे इस डर के साथ ही जीते हैं. कब किसकी राखी सुनी रह जाए, कब किसी मांग उजड़ जाए, और कब किसकी गोद खाली रह जाए कोई नही जनता.
हाल ही में पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए चुरू के गौरीसर गाँव के जवान राजेंद्र नैण के पार्थिव शरीर के साथ पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। भारतीय परंपरा लडकियों को शमशान घाट जाने की अनुमति नही देती लेकिन शहीद के परिवार से फैसला लेते हुए ढ़ाई साल की बेटी मिष्ठी से अपने पिता को मुखाग्नि दिलवाई गयी। इस नजारे को देख वहा उपस्थित एक-एक व्यक्ति जुदाई के दर्द से कांप उठा और सबकी आंखे नम हो गई.
बता दे कि राजेंद्र अभी केवल 26 साल के ही थे और 2 साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे. कुछ ही दिन पहले उनकी पत्नी अपने मायके गई थी लेकिन खबर सुनते ही मंगलवार को सुबह ही अपने ससुराल पहुंच गई. शव देखते ही उनकी पत्नी वेहोश हो गई. अभी शहीद राजेंद्र की ढाई साल की एक बेटी और एक साल का बेटा है जिसको अपने पिता का चेहरा तक नही पता उसके सर से पिता का हाथ ही उठ गया.