आज पार्टी नेताओं की बैठक में आखिर क्यों खंडूड़ी को भूल गई भाजपा ?

देहरादून;     एक दौर ऐसा भी था जब भाजपा कभी संस्कारों की बात करते हुए बुजुर्गों के सम्मान की बात करते नही थकती थी परंतु बदलते समय की बयार के साथ अब भाजपा में भी बदलाव नजर आ रहा है। अटल, अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सिकंदर बख्त और राजमाता विजयराजे सिंधिया जैसी शख्सियतें उम्रदराज होते नेताओं का सम्मान करती थी, उनके अनुभव से लाभ लेती थी।
ज्ञात हो कि जब उत्तराखंड बना था तब सूबे की अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री भाजपा आलाकमान ने उम्रदराज स्व.नित्यानंद स्वामी को चुना था। ताकि नये राज्य में अंतरिम सरकार अनुभवी मुखिया के अनुभवों से कुछ सीखे और अफसरशाही मुखिया के अनुभव को देखकर सरकार के काबू में रहे। आज जब होटल मधुबन में आला पदाधिकारियों की बैठक में शिरकत करने उम्रदराज गढ़वाल सांसद और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी.खंडूड़ी पंहुचे तो उनको बैठन के लिए जगह तक नहीं मिली। न ही मंच पर जगह रिजर्व मिली और न नीचे पहली पक्तिं में। बहरहाल जैसे तैसे खंडूड़ी के लिए जगह बनाई गई लेकिन नई भाजपा का नया प्रबंधन बता गया कि बदलती हुई भाजपा में बुजुर्गों के लिए कोई जगह नही है। अब यह वाक्या तो इसी ओर इशारा भी कर रहा है कि आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में बीसी खंडूडी को भाजपा शायद ही टिकट दे।
शायद नई दौर के भाजपा के आला नेता भूल रहे हैं कि उम्र का हांका सबके लिए होता है। तभी तो उत्तराखंड के गढ़वाल मे एक कहावत है “जगदी लाखड़ी पैथर औंदी” मतलब जलती लकड़ी पीछे की ओर आती है। आज नई भाजपा बुजुर्गों से कतरा रही है तो आने वाले कल की नई पीढ़ी भी मौजूदा दौर के नेताओं से बहुत कुछ सीख कर गांठ में बांध रही है। इसके साथ लगता है यह भी तय हो गया है कि नई भाजपा मे उत्तराखंड के लिए अब न खंडूड़ी जरूरी हैं और न उनकी ईमानदार वाली छवि और न ही उनका अनुभव। इसका मतलब साफ है कि शायद 2019 में गढ़वाल ससदीय सीट पर भाजपा किसी नए दावेदार को आजमाएगी और खंडूड़ी, आडवाणी की तरह नेपथ्य में चले जाएंगे।

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