अब तो हो ही गया बच्चों का बंटाधार…..

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हड़ताल, हड़ताल और हड़ताल। ऐसी हड़़तालों को देखकर सबसे पहले यही ख्याल आता है कि सरकारी कर्मचारियों को काम न करने के बहाने चाहिए। जिस दिन काम न करना हो उस दिन हड़ताल। पिछले कई दिनों से एक के बाद एक सरकारी कर्मचारी की हाजिरी धरनों और हड़तालों में बढ़ गई है। और अब प्राथमिक शिक्षक संघ धरने पर है।

 
गुरू को भगवान का दर्जा दिया जाता है। शिक्षक ही विधार्थी को सही और गलत में अंतर बताता है। पर जब शिक्षक ही गलत राह में आ जा तो क्या!! जी हां आजकल उत्तराखंड में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। अभी राजकीय शिक्षक संध की हड़ताल खत्म हुई ही थी कि अब प्राथमिक शिक्षक धरने पर बैठ गए है। शिक्षकों ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नही किया जाएगा वो काम पर नही लौटेंगे। सरकारी प्राथमिक स्कूलों की दशा किसी से भी नही छुपी। पहले ही वहां पढाई व्यवस्थित रूप से नही मिल पाती तो अब इन शिक्षकों की हड़ताल ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। ऐसे में स्कूलों में ताले लगे है और शिक्षक राजधानी दून में आकर नारेबाजी कर रहे है।

 
गौर करने वाली बात ये है कि हड़ताल पर आए कर्मचारी पहले-पहले तो जोरों से नारे लगाते है। उसके बात दिन भर कुछ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में पोस्ट करते है । कुछ इधर उधर की बातों में समय काट लेते है। कही ऐसा तो नही कि आजकल देशभर में काम न कहने का बहाना हड़ताल पर बैठना हो गया है।
प्रदेश में शिक्षा को सुधारने की कोई ऐसी व्यवस्था अभी तक लागू नही की है। तो कह तो यह भी सकते है कि अपनी मांगों के लिए शिक्षकों का हड़ताल पर जाना गलत है। पर जब बात शिक्षक की आती है तो स्वार्थ शब्द आस पास नजर नही आता। ऐसे में शिक्षकों का हड़ताल पर जाना कुछ हजम नही होता। इसलिए दोष शिक्षकों का भी नही हैं राज्य सरकार ही शिक्षा नीति के लिए गंभीर नही दिखती है। अगर गंभीर होती तो शिक्षकों की मांग को भी गंभीरता से लेती। और आज शिक्षकों को हड़ताल में जाने की जरूरत भी नही पड़ती।
अब सवाल ये है ऐसे में शिक्षकों की हड़ताल से नुकसान किसको है। जाहिर है उन विधार्थियों का जो विद्यालयों में पढ़ाई पाने के उद्देश्य से आते है। पर ऐसी हड़ताल की वजह से शिक्षा पाने से दूर हो जाते है। उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा पर पहले भी कई खबरे प्रकाशित की जा चुकी है जो विद्यालयों यहां पढ़ने और पढ़ाने वालों के खस्ता हाल को बंया करती है। स्कूल चलाने वाले तो यहां की स्थिति से भी वाकिफ होते है तो ऐसी हड़ताले करके इस व्यवस्था को और क्यो चलर बना रहे है। बात करके भी समस्याओं के सामाधान क्यो नही निकाले जाते शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर। क्यों राज्य सरकार शिक्षकों की मांगों और उनकी सहूलियत को समझ में नाकाम है।
अपनी मांगों को पूरा कराने का एक उपाय सिर्फ हड़ताल को ही क्यो बनाया जाता है। दूसरे माध्यम से भी अपनी बातें सरकार और प्रशासन तक पहुंचायी जा सकती है पर शर्त ये है सरकार और प्रशासन उन मांगों को सुनने के लिए ईमानदार हो। खैर, अभी पता नही प्राथमिक शिक्षक संघ कितने दिन तक हड़ताल पर बैठेगा और प्राथमिक विद्यालयों पर ताले लटके रहेंगे। स्कूल बंद, शिक्षकों का बंक और बच्चें हलकान, यानी बच्चों की पढाई चौपट। अब हो गया बंटाधार।

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