अफसोस: तो इसलिए मजबूरन पहले ट्रांसजेंडर कॉलेज प्रिंसिपल ने दिया इस्तीफा ….

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कहते हैं कि पढ़े लिखे लोग ही एक सभ्य समाज की स्थापना करते है। पर जब इस पढ़े लिखे समाज की सबसे मजबूत कड़ी यानी शिक्षक और छात्र ही इससे मुकर जाए तो क्या!

भारत समेत दूसरे कई राष्ट्र तीसरे महत्वपूर्व जेंडर यानी ट्रांसजेंडर के प्रति अभी तक संवेदनशील नही हो पाए है। समाज अभी भी उन्हें टेढ़ी नजर करते ही देखता है। ऐसे में ट्रांसजेंडर कैसे समाज का हिस्सा बनेंगे ये सभी बहुत ही भयपूर्ण प्रतीत हो रहा है। और उसी का नतीजा यह है कि  भारत के पहले ट्रांसजेंडर कॉलेज प्राचार्य मानबी बंदोपाध्याय ने करीब डेढ़ साल तक पद पर बने रहने के बाद अपना इस्तीफा सौंप दिया है.

उन्होंने अपने संस्थान के शिक्षकों और छात्रों के एक धड़े के असहयोग पर निराशा जाहिर की है. नादिया जिला मजिस्ट्रेड सुमित गुप्ता ने आज कहा कि उन्हें जिले के कृष्णनगर महिला कॉलेज के प्राचार्य का इस्तीफा 27 दिसंबर को मिला और इसे राज्य उच्च शिक्षा विभाग को कल भेज दिया गया.

मानबी ने आरोप लगाया कि वह पदभार संभालने के शीघ्र बाद से ही शिक्षकों के एक धड़े से असहयोग का सामना कर रही थी.

वहीं, दूसरी ओर शिक्षकों ने भी प्रचार्य के खिलाफ यही आरोप लगाया जिससे गतिरोध पैदा हुआ.

मानबी(51) ने बताया कि उनके सारे सहकर्मी उनके खिलाफ थे. कुछ छात्र भी उनके खिलाफ थे. वह बहुत ही मानसिक दबाव में थी और इस्तीफा देने को मजबूर हुई.

मनाबी का पहले का नाम सोमनाथ था. उन्होंने 2003..04 में कई ऑपरेशन कराए और महिला बन गई. उन्होंने 1995 में देश की पहली ट्रांसजेंडर पत्रिका ‘ओब..मानब’(ह्यूमन) का प्रकाशन किया था.

 

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