अच्छा वर दिलाएगा हरियाली तीज व्रत

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हिंदु धर्म में व्रर्तो का बहुत महत्व है। हरियाली तीज भी उनमें से एक है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज का पर्व मनाया जाता है। तीज का व्रत महिलाए अच्छा वर प्राप्त करने और अखंड सौभाग्य के लिए करती है। पौराणिक कथा के अनुसार पार्वती जी ने षिवजी को पाने के लिए तीज का व्रत किया था। षिव और पार्वती सुखद और सफल दांपत्य के सूचक है इसलिए तीज पर महादेव और पार्वती जी की पूजा दोहरे पुण्य की प्राप्ति कराती है। इसमें वृक्षो,फसलो, नदियों और पषु पक्षियों की अराधना भी की जाती है। मान्यता है कि श्रवण शुक्ल तृतीया के दिन देवी पार्वती ने सौ वषों की साधना के बाद भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए इस दिन युवतियां मां पार्वती की पूजा करती हैं। हाथों में मेहंदी रचा स्त्रियां गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं।

हरियाली तीज की पूजा विधि

यह त्योहार वैसे तो तीन दिन मनाया जाता है लेकिन समय की कमी की वजह से लोग इसे एक ही दिन मनाते हैं। इसमें पतिव्रता पत्नियां निर्जला व्रत रखती हैं। हाथों में नई चूड़ियां, मेहंदी और पैरों में अल्ता लगाती हैं और नए वस्त्र पहन कर मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।

भारत में कई स्थानों पर कुंवारी युवतियां भी इस दिन अच्छे वर की कामना से व्रत रखती हैं। यह दिन स्त्रियों के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। हरी-भरी वसुंधरा के ऊपर इठलाते इंद्रधनुषी चुनरियों के रंग एक अलग ही छटा बिखेर देते हैं। स्त्रियाँ पारंपरिक तरीकों से श्रृंगार करती हैं तथा माँ पार्वती से यह कामना करती हैं कि उनकी जिंदगी में ये रंग हमेशा बिखरे रहें।

विवाहित स्त्रियां इस दिन खासतौर पर मायके आती हैं और यहां से उन्हें ढेर सारे उपहार दिए जाते हैं, जिसे तीज का शगुन या सिंजारा कहा जाता है। इसी तरह जिस युवती का विवाह तय हो गया होता उसे उसके ससुराल से ये सिंजारा भेजा जाता है। Reuters-Mehendiपूजन के बाद महिलाएं मिलकर शिव-गौरी के सुखद वैवाहिक जीवन से जुड़े लोकगीत गाती हैं। इन लोकगीतों की मिठास समूची प्रकृति में घुली हुई सी महसूस होती है। इसके साथ ही आनंद लिया जाता है सावन के झूलों का भी। झूलों पर ऊंची-ऊंची पेंग लेती महिलाओं का उत्साह देखते ही बनता है।

 

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